पिताजी, हम हमेशा आप पर गर्व करेंगे
Posted by Arun Mishra in Celebrations, Happiness, Happy Family, Social Happiness, कहानी, यादें, हिंदी में पढ़ें Onमैं छोटा था, बहुत छोटा, नर्सरी में दाखिला नहीं हुआ था, गावं में रहता था, माँ, दादी और घर के दो बैल करन अर्जुन के साथ । उमर पांच साल । पिताजी शहर में काम करते थे । गावं आते थे तो हम उनसे चिपक जाते थे और अगले सब दिन चिपके रहते थे । उनकी थाली में खाना खाते थे । उनके गिलास में पानी पीते थे । पिताजी बहुत प्यार करते थे ।
पहली में था । लखनऊ शहर के छोटे से कमरे में हम लोग रहते थे । पिताजी शाम को मिठाई लेकर नहीं आए थे । साइकिल से उतरे ही थे कि हम मिठाई मांगने लगे । जिद्दी बच्चों की तरह । पिताजी ने एक चाटा मार दिया । हम रोए और तब तक रोए जब तक पिताजी ने अपनी गोदी में लेकर चुप नहीं कराया । और फिर घंटो दुलार किया पिताजी ने ।
आठवीं में था । अब मैं थोड़ा थोड़ा समझने लगा था । और अब समझ में आने लगा था कि संघर्ष क्या होता है । पिताजी दिल्ली में काम किए, लखनऊ में काम किए, बुक बाइंडिंग का काम किए, tailor का काम किए, कपड़े की दुकान में काम किए, salesman का काम किए, ये किए, वो किए और जब मैं KG में था तब उन्हें बैंक में चपरासी की नौकरी मिली । आज वो प्राइवेट से दसवीं कर रहे थे । जब मैं आठवीं पास हुआ तो पिताजी दसवीं पास हो गए । उनका promotion हो गया । अब वो clerk हो गए थे ।
उन्होंने मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाया । उस समय 50 रूपए फीस थी सिटी मोंटेसरी स्कूल की । शायद इतना ही किताब, कॉपी, ड्रेस और दूसरी चीजों पर खर्च हो रहा था । बेसिक तनख्वाह थी 500. मतलब आमदनी का एक बड़ा हिस्सा मेरी पढाई में जा रहा था । बाकी से घर चलता था । बिजली का बिल और राशन की दुकान वाली बातें अभी भी याद हैं । पर पिताजी ने कभी चूं नहीं की ।
दसवीं कर ली । 12वीं कर ली । पिताजी दिन रात काम करते रहे । संघर्षो से जूझते रहे । फीस भरते रहे । घर के खर्चों से लड़ते रहे । पर कभी बोले नहीं । हम पूछते थे तो कहते थे कि सब ठीक है बेटा, जिंदगी ऐसे ही चलती है । हम जानते थे कि जिंदगी ऐसे नहीं चलती, पिताजी चला रहे हैं, उसी कपड़े में, उसी जूते में, साल दर साल । हमें सब समझ में आ रहा था पर अपनी मुट्ठी भींच कर रह जाते थे । पर सोच लिए थे कि “ऐ तकदीर, एक दिन तुझे मुट्ठी खोल कर जरूर दिखाएंगे ।”
1987 में इंजीनियरिंग कर लिया । अगले 10 साल उतार चढ़ाव के रहे । तकदीर को चैलेंज किया था सो वो भी मेरा हिसाब ले रही थी । पिताजी से सीखा था कि संघर्ष किसे कहते हैं । सो मैं भी जूझता रहा । 1998 में मैंने पिताजी को मुंबई बुलाकर एक बड़ी से कुर्सी पर बिठाया और बताया कि ये अपना ऑफिस है तो वो बहुत खुश हुए । मैं उनको खुश होते देखता रहा ।
पिछलीं मई गावँ में भोज था । इस मई भोज की समापन पूजा थी । मैंने पहले ही कह दिया था कि पिताजी आप चिंता ना करें । सब अच्छे से संपन्न हो गया । गले लगा लिए । उनकी आंखे भर आईं । और मेरी भी । वो मुझे प्यार कर रहे थे और मैं उन पर गर्व कर रहा था ।
पिताजी, हम हमेशा आप पर गर्व करेंगे ।
हमेशा ।।
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Arun Mishra
Motivator, Trainer, Success Coach, Happiness Guru, Life Counselor, Career Counselor