माते से मिलन

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बात 20 अगस्त 15 की है । मैं बेटा बेटी और पत्नी दिल्ली 12 बजे पंहुचे । वहां से अगली यात्रा रात 10 बजे की थी । 10 घंटे का समय था अपने पास । माते Subodh Mittal​ से वादा किया था कि अगली दिल्ली यात्रा पर उनसे जरूर मिलूंगा, उनके ही घर पर मिलूंगा । वादा अगर प्रेम भरा हो तो निभाना बहुत जरुरी है । टैक्सी किया और पंहुच गए अपनी सेना के साथ । हम सब 1 बजे माते के द्वारे थे ।

प्रेम भरा स्वागत हुआ । माते और बापू दोनों घर के अंदर ले गए । अपने से लगाया । हम सब बैठे । पानी पिया । किसी ने चाय पी । किसी ने शरबत पिया । कभी न खतम होने वाली बातें शुरू हुई । Raghvendra​ भाई को फोन किया । उन्हें भी बुलाया ।

24 घंटे के ट्रेन के सफर ने थोड़ा थका दिया था । सभी फ्रेश हुए । स्नान किया । मेरी यह आदत अब धीमे धीमे जमाना जान गया है कि मैं जिस जहां भी जाता हूँ अपना घर समझता हूँ, जिससे मिलता हूँ उसे अपना समझता हूँ । पूर्णतः अपना । दिल से अपना ।

माते ने शुद्ध शाकाहारी खाना बनाया था । बहुत स्वादिष्ट । खाने में क्या क्या था यह नहीं बताऊंगा वरना आप की लार टपकेगी । बस इतना जान लीजिए कि खाने में बहुत प्यार था । वह खाना नहीं था, भोजन था ?

माते तीन चीजों की शौकीन हैं – भोजन, भजन और मनोरंजन । बच्चों , बच्चों की माँ और मेरी माते के बीच गुप चुप बातें चली । और एक फिल्म देखने की योजना बन गई । सब ने मेरी शिकायत भी की गई कि मैं फ़िल्म नहीं दिखाता । माते बोली कि वह दिखाएंगी । आनन फानन में शाम 4 से 7 बजे का समय तय हुआ । पास के मॉल में थिएटर है । वहीं गए । सब ने फ़िल्म Brothers देखी । राघव का भी टिकेट ले रखा था । आधी फिल्म होते होते वो भी आ गए । राघव भाई से बात हुई । उनका दिल देखा । दिल की धड़कन देखी । फिल्म brothers देखते देखते सच्चा brother मिल गया । बहुत मजा आया ।

वापस घर गए । रात की ट्रेन के लिए तैयारी चालू हो गई । मैं बैग पैक कर था । लेडीज किचेन संभाल रही थी । फटाफट गाड़ी में ले जाने के लिए भोजन पैक कर दिया गया । सब ने चाय पी । फोटो session हुए ।

मिलना हमेशा सुखदाई होता है । बिछुड़ना हमेशा दुखदाई । रात पौने 9 बजे रहे थे । टैक्सी में सब बैठ गए । मन के भाव बदलने लगे । मन दुखी होने लगा । हाथ bye bye करने लगे । आँखे नम होने लगी ।

प्रणाम बापू
प्रणाम माते

प्यार आप दोनों को ।

हम इस छोटी सी मुलाकात को जीवन भर याद रखेंगे ।

अरुण
परिवार सहित ??