वे हमसे पहले चले गए
ट्रेन में ही थे
25 जून 2016 की तारीख थी
सोच रहे थे कि पिताजी को अमेठी के गौरीगंज गावं से लाकर मुंबई में दवाई कराएं गे
माँ ने उन्हें बताया भी कि बेटा ट्रेन में बैठ गया है
आ रहा है, मुंबई ले जाएगा, दवा करा देगा
वो बोले कि नाहक बेटे को परेशान मत करो
वो ठीक हैं, कोई चिंता की बात नहीं है
पर शायद उन्होंने तय कर लिया था
शाम के 6:15 बजे थे
राम हो, राम हो
दो बार बोले और
चले गए
मैं राश्ते में ही रह गया
वे हमसे पहले चले गए
27 को दाह संस्कार, 4 जुलाई को बाल, 5 को श्राद्ध व 7 को तेरही हुई ।
जिन उंगलियो को उन्होंने कलम पकड़नी सिखाई थी
उन्ही उंगलियो ने मुखाग्नि दी
जिन हाथों को उन्होंने कर्म करना सिखाया था
उन्हीं हाथों ने उनका अंतिम कर्म किया
दिल बहुत जोर जोर से रोना चाहता है
पर रो नहीं पा रहा
‘बाबू जी’ ने रोना सिखाया ही नहीं
उन्होंने सबसे बात की
दुश्मन भी उनके दोस्त थे
रिश्ते नाते सभी उन्हें प्यार करते थे
उनका सम्मान करते थे
शत्रु भी मित्र थे
हमें उन्होंने सिखाया कि सभी से बात करो
सबसे हंसो, सबसे बोलो
सबसे प्यार से रहो
जैसे आपने सिखाया
हम वैसे ही जिएंगे
‘बाबू जी’
ॐ ॐ ॐ