मैंने तीन बातें सीखी
कल मैं ऑफिस के लिए chair खरीदने गया. दूकान बड़ी थी, नाम था फर्नीचर-सेंटर.
कुर्सी देखी. चुनी. मोल भाव होने लगा. वो 5000, मैं 3000 ?
– नही, नही 3 नही हो पाएगा, हम जानते हैं आप बिजनेसमैन हो, आप हमारी बात समझोगे, धंधा मंदा है, सरकार अच्छा काम कर रही है पर समय लगेगा, तब तक सब को सर्वाइव करना है, इन्हें भी, उन्हें भी, हमको भी.
– पर आपको कैसे मालूम कि मैं बिजनेसमैन हूँ ?
– सर, आप के चेहरे पर लिखा है, हम जान गए हैं ?
– ठीक है, पर सरकार कहाँ अच्छा काम कर रही है, धंधा तो मंदा है ?
– नही सर, काम अच्छा कर रही है, समय की बात है, सब अच्छा होगा.
– OK, चलो मान लिया, पर आप का दाम बहुत है, बहुत जादा ?
– आप के लिए बेस्ट रेट लगा देता हूँ, 4200
– नहीं, NO, इतना पैसा अपने पास नही है
– पैसा है सर आपके पास, बैंक में, ATM से निकाल कर दे दीजिएगा, चलिए last rate 4000, डिलवरी फ्री
– OK, ठीक है, 2 chair भिजवा देना
– थैंक यू सर
– चलते चलते ये तो बताओ, ये धंधा जोर से कब चलेगा
– सरकार काम कर रही है, जल्दी ही, तब सर आप ऑफिस रेनोवेट करवाना, और हमारे यहां से सब फर्नीचर लेना
– ठीक है ?
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मैंने तीन बातें सीखी.
1. ग्राहक पहचानिए
2. मीठा बोलिए
3. आशावादी रहिए भी, आशावादी दिखिए भी
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