मथुरा दर्शन

Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo.

Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo.

बात इसी जन्माष्टमी की है । मुंबई से हम 15 लोग मथुरा वृंदावन गए । 21 अगस्त की रात यात्रा शुरू हुई । 22 की शाम मथुरा पहुंचे । फैब होटल आकर्षण में रुके । स्नान वगैरा किया, तैयार हुए । कृष्ण जन्मस्थली गए । कृष्ण के दर्शन हुए । बहुत अच्छी सजावट थी । साफ सफाई बहुत थी । अथाह भीड़ थी पर सब व्यवस्थित था । बहुत अच्छी व्यवस्था थी । एक बूढ़ी माई मुझसे पूछने लगी – कल मोदी जी आ रहे हैं क्या ? मैंने कहा – योगी जी आ रहे हैं । फिर से उसने वही पूछा, तो मैने कहा कि मोदी जी का पता नही, पर योगी जी आ रहे हैं, क्या आपको मोदी जी से मिलना है ? बोली – हम उन्हें बहुत चाहते हैं, उन्ही की वजह से आज ये सब इतना अच्छा हो रहा है । इतनी अच्छी सजावट है । इतना बढ़िया बनाया है ।

अगले दिन हम गोकुल धाम गए । वहां मोदी जी की दूकान देखी ? (फोटो देखिए) ।

गोकुल में मंदिर गए । हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की । सब बढ़िया था । केवल एक बात से सावधान रहिए । पंडो के चक्कर मे न पड़िए । पंडे आप को ब्रेनवाश करेंगे व दान के नाम पर लूट लेंगे । पंडो की बात छोड़ दें तो बाकी सब अच्छा था ।

यमुना नदी में बहुत पानी था । बाढ़ जैसा पानी । जलस्तर बहुत बढ़ा हुआ था । आप कल्पना कीजिए कि जब कृष्ण का जन्म हुआ तब भी वर्ष का यही समय था, पानी बहुत बरसा होगा, यमुना का जलस्तर इसी तरह बढ़ा होगा, वाशुदेव जी उन्हें कैसे नदी पार कराए होंगे ? शायद उन्होंने कन्हैया को नही बल्कि कन्हैया ने ही उन्हें पार कराया होगा ?

Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo. Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo.

गोकुल दर्शन के बाद हम लोग रमण रेती गए उसके बाद वापस विश्रामस्थल पर आ गए । थोड़ी देर आराम किया । हमने 16 सीटर ट्रैवलर बस की थी । शाम 6 बजे वृंदावन चल दिए । 2 km पहले ही बड़ी गाड़ी को रोक दिया जा रहा था । इसलिए वहां से हमने ऑटो किया व प्रेम मंदिर पंहुचे । शाम हो चुकी थी । हलका अंधेरा हो रहा था । सफेद मार्बल का सुंदर मंदिर लाइट व फूलों से सजा हुआ था। झांकियां बनी थी । एक झांकी में कृष्ण के चारो तरफ गोपियाँ नाच रही थी । दूसरे में पूतना तड़फड़ा रही थी । तीसरे में कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा रखा था । एक अन्य में कृष्ण बांसुरी बजा रहे थे और गाएं चर रही थी । दूसरी तरफ कालिया सांप फन फैला कर खड़ा था और उसके ऊपर कन्हैया नृत्य कर रहे थे ।

मंदिर परिसर कई एकड़ में फैला था । मंदिर की दीवारें कृष्ण लीला से चित्रित थी । बहुत सुंदर नक्कासीदार रंगीन चित्रण था । मंदिर के अंदर भी ऐसा ही दृश्य था । सब बहुत भव्य था । 2 लाख से जादा लोग मंदिर परिसर में थे । भक्त आ रहे थे, भक्त जा रहे थे, पर भक्त कम नही हो रहे थे । हमनें फैसला किया कि हम रात 12 बजे तक वहीं रुकेंगे । भव्यता को निहारेंगे । मध्यरात्रि कृष्ण जन्म मनाया जाएगा । उसका दर्शन करेंगे । जीवन में ऐसा सौभाग्य बहुत कम मिलता है । आज कन्हैया ने स्वयं यह अवसर दिया है । इस क्षण को जीवन का क्षण बनाएंगे । हम लोग वहीं, मंदिर प्रांगण में एक कोने में, थोड़ी से खाली जगह में, बैठ गए । बाते करते रहे । पानी के फव्वारे चल रहे थे । कभी कभी उन फौवारों पर फ़िल्म चित्रण हो रहा था । हम लोग मंदिर के अंदर गए । दर्शन किए । आकर बैठ गए । सब इतना अच्छा लगा कि 1 घंटे बाद पुनः अंदर गए, दर्शन किए । फिर आकर वहीं बैठ गए । रात के 12 बजे बैंड बजने लगा । आरती होने लगी । फौवारों पर कृष्ण के चित्र आने लगे । चारो तरफ ‘हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की’ होने लगा । सामने का दृश्य देखें तो पीछे का छूट जाए, पीछे का देखें तो सामने का छूट जाए । दसों दिशाओं में कुछ न कुछ हो रहा था, बहुत भव्य हो रहा था । अत्यंत रमणीय । अत्यंत मनोहर । अत्यंत भव्य । असीम आनंद । असीम सुख ।

 

Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo.

 

अगले दिन, 24 अगस्त 2019 को, हम सुबह 10 बजे गोवर्धन पर्वत की तरफ निकल पड़े । ट्रैवलर बस चली जा रही थी । बस अच्छी थी और सड़क भी अच्छी थी । सड़क को दोनों तरफ दूर दूर तक हरे हरे खेत दिख रहे थे । 1 घण्टे बाद हम स्थान पर पहुंच गए । पतली गलियों से करीब 1 km चल कर हम गोवर्धन पर्वत के पूजा स्थल पर पंहुच गए । अब पर्वत इतना बड़ा नही है । कृष्ण की कहानी करीब 4500 वर्ष पुरानी है । इतने लंबे समय में न जाने कितने तूफान व भूकंप आए होंगे, भौगोलिक परिवर्तन हुए होंगे। मनुष्य की जनसंख्या भी बढ़ी होगी, जरूरतें भी बढ़ी होंगी, पर्वत को काट कर खेत बना दिया गया होगा । पर धर्म के भाव व मन के भाव अभी भी हैं । जो भी शेष है, उसे ही पर्वत समझ कर दर्शन व पूजा की जाती है ।

वहां से आगे बढ़े और शहर से बाहर शंकर जी का सुंदर मंदिर था, लोग कम थे, शांति थी । ड्राइवर लोकेश ने कहा कि बस के मालिक अनुज जी अक्सर यहाँ आते हैं, उन्हें अच्छा लगता है, वो कहते हैं कि यमुना के तट पर इस मंदिर में आने से उनके मन को “शांति” मिलती है, आप उनके मित्र हैं, इसलिए हम आपको यहां ले आए । लोकेश का “मन को शांति” शब्द पर जोर देना, हमें अच्छा लगा । उसका केयरिंग नेचर हमें अच्छा लगा कि वह चाहता है कि वो वह दिखाए या दर्शन करवाए जो हमारे मन को अच्छा लगे, जिससे हमारे मन को शांति मिले । शायद वो जान गया था कि हम जिसकी खोज में भटक रहे हैं, मुंबई से मथुरा भ्रमण कर रहे हैं, वो “मन की शांति” है ? । वो जान गया था कि इनके लिए “मन की शांति ही ईश्वर” है अगर दर्शन करने से इन्हें “मन की शांति” मिली तो समझिए इन्हें ईश्वर मिले ।

अगला दर्शन गिरिराज मंदिर का था । यहाँ दर्शन के बाद हम सबने जलेबी खाई । जलेबी आलू की थी । कैसे बनी थी, यह नही मालूम, पर स्वाद में अलग थी, अच्छी थी ?

वहां से हम बरसाने चले गए । राधा रानी के दर्शन करने । बहुत भीड़ थी । बहुत जादा । बहुतै जादा । पत्नी को मैंने समझाया कि तुम भीड़ में न घुसो, तुम्हे हार्ट की प्रॉब्लम है, तकलीफ होगी, तुम यहाँ कूलर के पास खड़ी हो जाओ, यह जगह ऊंची है, जब पट खुलेगा (पर्दा खुलेगा), तब यहाँ से सब दिखेगा । हम दोनों वहीं खड़े होगए । थोड़ी देर बाद पट खुले, वहीं से दर्शन किए । वहीं से प्रणाम किया । बहुत अच्छा लगा । बहुत बढ़िया लगा ।

Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo.      Arun Mishra's photo.   Arun Mishra's photo.

मैंने पहली बार ताजमहल को 1975 में देखा । तब मैं पाँचवी में पढ़ता था । विद्यालय के टूर में गया था । ताजमहल की दीवारों पर की गई नक्कासी अच्छी लगी, सुंदर लगी थी । संगमरमर के पत्थरों पर बने अंगूर नेचुरल लग रहे थे । तब मैं केवल 12 साल का था पर यादें अभी भी जिंदा हैं ।

उसके बाद 2012 के आस पास गया था । और इस वर्ष अपनी सोसाइटी वाले ग्रुप के साथ 25 अगस्त 2019 को मथुरा वृंदावन में जन्माष्टमी मनाने के बाद गया ।

हर बार कुछ बदलाव दिखा । हर बार साफ सफाई व सौंदर्यीकरण बढ़ती दिखी । सेफ्टी व सिक्योरटी concern भी बढ़ते दिखे । टिकट के दाम भी बढ़ते दिखे । इस बार ताज का टिकट ₹ 50 व मकबरे का टिकट ₹ 200 एक्स्ट्रा था । 95% लोग केवल ताज का टिकट ले रहे थे ।

जो मैंने 1975 में पत्थरो पर जो डिज़ाइन देखी थी, अब वो नहीं दिखी । शायद यह मेरा भ्रम हो या शायद मरम्मत व सौंदर्यीकरण की प्रोसेस में बदलाव हो गया हो ।

जो भी है, बदलाव अच्छे के लिए हुआ है । मुझे याद है, जब 1975 में मैंने देखा था, मकबरे का सीन किसी गलीकूचे में मजार वाले जैसा था, एक गंदा से दाढ़ी वाला आदमी दुआ करने के लिए मोरपंखी झाड़ू सिर पर मारता था और पैसा मांगता था । अब वह सब नही है । अब चीजें जादा साफ सुथरी हैं ।

इमारत सुंदर है । उसकी सुंदरता इसलिए भी जादा दिखती है क्योंकि उसके पीछे यमुना है, आस पास दूसरी इमारत नही है, बड़ा है, सफेद है, साफ सुथरा है, और उसके नाम के साथ love जुड़ा हुआ है ।

सरकार को धन्यवाद कि उन्होंने इसे राष्ट्रीय धरोहर बनाया और इसके रख रखाव व सौंदर्यीकरण पर अच्छा काम किया ।

Arun Mishra