समाज टूट रहा है
पता नही यह समस्या शहरों में ही है या गाँवो में भी घुस चुकी है ?
अजय वर्मा जी लखनऊ के हैं । पिछले 10 साल से मुंबई में हैं । प्रॉपर्टी एजेंट हैं । कभी कैटरिंग का काम करते थे । कभी पानी पूरी का ठेला लगाते थे । एक समय वो गैस सिलिंडर की एजेंटी करते थे । मतलब जिंदगी के गुजर बसर के लिए उन्होंने कई सारे काम किए, समय समय पर काम बदलते रहे, गुजर बसर करते रहे ।
2008 में मुझसे मेरे ऑफिस में मिले । बताए कि लखनऊ से 1 महीने पहले मुंबई आए हैं । यहीं रह रहे हैं । कुछ मदद चाहिए ।
लखनऊ नाम लिया तो एक स्थानिक बॉंडिंग जाग उठी । जो हो सका वो मदद कर दिया ।
फिर वो समय समय पर आते रहे, मिलते रहे, हाल चाल बताते रहे ।
उन्होंने अपने दोनों बेटों को बड़ा किया । उनको नौकरी करने लायक बनाया ।
3 साल पहले, बड़े वाले ने अपने ऑफिस में काम करने वाली क्रिस्चियन लड़की से शादी कर ली । शादी के बाद बेटा बहू अलग किराए के फ्लैट में रहने लगे ।
6 माह पहले दूसरे लड़के ने अपने ऑफिस में काम करने वाली किसी बिहारी लड़की से शादी कर ली । वह भी अलग फ्लैट किराए पर ले कर रहने लगा ।
इस समय माता पिता एक किराए के फ्लैट में रहते हैं, बड़ा बेटा बहू किसी दूसरे फ्लैट में रहते हैं, छोटा बेटा बहू किसी तीसरे फ्लैट में रहते हैं । तीनो अलग अलग । यह सब सही है या गलत, सोचने का विषय है, पर माता पिता को देखने वाला कोई नही है, यह सही नही है ।
बच्चों को माँ बाप क्या इसी लिए बड़ा कर रहे हैं कि जब उनकी जरूरत सबसे जादा हो तब वो बच्चे माँ बाप को छोड़ कर चले जाएं ?
शहरों में मेरे आस पास ऐसे बीसों उदाहरण हैं । समाज टूट रहा है । चिंतनीय ??