फ्रेंड व टेलीपैथी

25 सेप्टेंबर की बात है, सुबह सुबह मेरा मन नही लग रहा था । मैंने घर में कहा कि मैं आज रात घर नही आऊंगा । नामदेव से मिलने जाऊंगा । पत्नी बोली कि क्या हुआ ? मैंने कहा कि मेरा मन नही लग रहा है । बेटी बोली – जाओ पापा ।

रात नामदेव के मुंबई वाले घर पहुंचा ।

पता चला कि सुबह उसकी तबियत खराब हो गई थी । दवा खाई । अभी कंट्रोल में है । ठीक है ।

भाइयों, मित्र की तबियत खराब थी, इसीलिए सुबह मन नही लग रहा था । मन की तरंगें किसी मोबाइल या मानवी दूरसंचार की मोहताज नही हैं ।

कुछ लोग इन तरंगों व प्रोसेस को टेलीपैथी कहते हैं । चाहे जो पैथी कहें लोग, पर यह सत्य है कि मित्रों का दिल धड़कता है, इधर भी उधर भी ।

Arun Mishra