न कोई दहेज लेंगे न कोई गिफ्ट

अरुण भैया हमेशा कहे कि न कोई दहेज लेंगे, न कोई गिफ्ट लेंगे. जब बेटा छोटा था तभी भैया और भाभी ने यह फैसला कर लिया था. बेटा बड़ा हो गया. विवाह का समय आ गया. भैया ने अपना संकल्प कन्या पक्ष को एक नही, कई बार बता दिया. तिलक से एक दिन पहले समधिन को फोन करके यह बात साफ साफ पुनः बता दी.

तिलक के समय कन्या के भाई, पिता, दादा व कई बड़े लोग उपस्थित थे. वर पक्ष से भैया, उनके छोटे भाई, मामा व अन्य कई बड़े लोग उपस्थित थे. भैया के BITS पिलानी कॉलेज के मित्र अनुराग मिश्र जी भैया के पीछे बैठे थे.

तिलक कार्यक्रम शुरू हुआ. पण्डित जी ने पूजा पाठ मंत्रोच्चार शुरू किया. 100 ₹ यहाँ चढ़ाएं, 200 ₹ वहाँ चढ़ाएं, फूल अर्पित करें, माला पहनाएं आदि हुआ. भैया के समधी जी ने नारियल आदि उपहार दिया. उन उपहारों में एक उपहार घड़ी के डिब्बे जैसे था. भैया ने डिब्बा धीमे से खोला तो उसमें पैसे रखे थे. भैया के मित्र अनुराग व मामा जी ने भी यह देखा. भैया ने डिब्बा बंदकर के रख दिया.

इधर पंडित जी अपना पूजा पाठ आगे बढ़ा रहे थे उधर भैया सोच रहे थे कि वो क्या करें.इस पैसे को स्वीकार करें या न करें ? अगर स्वीकार करेंगे तो दहेज स्वीकारना हो जाएगा, उनका अपना दहेज विरोध का संकल्प टूट जाएगा, अपने बेटे के लिए नो दहेज का संकल्प टूट जाएगा और अगर स्वीकार नही करेंगे, वापस कर देंगे तो सामने वालों को असम्मान लगेगा, बुरा लगेगा.

जब तक पंडित जी ने अपना मंत्रोच्चार समाप्त करें तब तक भैया ने फैसला ले लिया था. समधी जी को वह डिब्बा वापस करते हुए बोले कि हमने आपको इसके लिए मना किया था, हम इसे स्वीकार नही सकते.

चेहरे की भाव भंगिमा से साफ दिख रहा था कि समधी जी को अच्छा नही लगा व समधी जी के पिता जी को असम्मान लग रहा था व गुस्सा आ रहा था. (जब तक कन्या के पिता, दादा व अन्य लोग स्वयं दहेज देंगे व मना करने पर इस तरह के रिएक्शन देंगे, तब तक दहेज प्रथा बंद नही होगी). भैया ने किसी रिएक्शन की परवाह नही की व कड़क होते हुए पैसा स्वीकारने से मना कर दिया.

भैया के मित्र अनुराग बहुत खुश हुए, भैया पर गौरवांवित हुए, भैया को बोले – बहुत अच्छा किया दोस्त, भैया को थपथपाए और भैया को चूम लिए.

– ‘महात्मा’ Prabhakar Mishra